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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाए !!!

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  कभी सूरदास ने एक स्वप्न देखा था कि  रुक्मिणी  और  राधिका  मिली हैं और एक दूजे पर न्योछावर हुई जा रही हैं। सोचता हूँ, कैसा होगा वह क्षण जब दोनों ठकुरानियाँ मिली हों गी। दोनों ने प्रेम किया था। एक ने बालक कन्हैया से, दूसरे ने राजनीतिज्ञ  कृष्ण  से। एक को अपनी मनमोहक बातों के जाल में फँसा लेने वाला कन्हैया मिला था, और दूसरे को मिले थे सुदर्शन चक्र धारी, महायोद्धा  कृष्ण । कृष्ण   राधिका  के बाल सखा थे, पर  राधिका  का दुर्भाग्य था कि उन्होंने  कृष्ण  को तात्कालिक विश्व की महाशक्ति बनते नहीं देखा।  राधिका  को न महाभारत के कुचक्र जाल को सुलझाते चतुर  कृष्ण  मिले, न पौंड्रक-शि   शुपाल का वध करते बाहुबली  कृष्ण  मिले। रुक्मिणी   कृष्ण  की पत्नी थीं, पटरानी थीं, महारानी थीं, पर उन्होंने  कृष्ण  की वह लीला नहीं देखी जिसके लिए विश्व  कृष्ण  को स्मरण रखता है। उन्होंने न माखन चोर को देखा, न गौ-चरवाहे को। उनके हिस्से में न बाँसुरी आयी, न माखन। कितनी अद्भुत लीला है...