सोशल फोबिया

सोशल फोबिया क्या है:

असल में एक मानिसक बीमारी है जिसका medical name है social anxiety disorder और यह असल में उतना गंभीर रोग नहीं है जितना इसके परिणाम होते है क्योंकि इसमें आदमी सीमित हो जाता है और वो समाजिकता से कटकर रहने लगता है उसे किसी पर भरोसा करने का मन नहीं होता क्योंकि उसके मन में असुरक्षा की भावना होती है कि फलां व्यक्ति उसे धोखा दे सकता है और ऐसे में उनके बर्ताव में गंभीर स्तर का बदलाव होता है और वो लोगो से मिलना जुलना भी पसंद नहीं करते है | नकारात्मक सोचने लगते है और इसी स्थिति को social phobia कहा जाता है और अगर सही समय पर इसे पहचान कर इस बारे में कोई जरुरी कदम नहीं उठायें जाये तो स्थिति खराब होने लगती है क्योंकि आदमी ऐसे स्वाभाव की वजह से अपनी मूल प्रवृति खोने लगता है और जिसकी वजह से उसके रिश्ते नाते भी खराब होने लगते है | social phobia के कोई पुख्ता कारण अभी तक स्पष्ट नहीं हुए है लेकिन विभिन्न medical labs में इस पर रिसर्च जारी है और जानकर ये मानते है कि ऐसा biological , psychological और अपने आस पास के माहौल की वजह से हो सकता है |हमारे दिमाग का एक हिस्सा होता है जो कंप्यूटर की तरह 1/0 की तरह संकेत देता है जैसे “फाइट और फ्लाइट ” की तरह और जब दिमाग में किसी तरह की कोई विकृति होती है यह हिस्सा सामान्य तौर पर काम करना कम कर देता है और संकेत नहीं मिलता है | इसे biological कारण हम कहते है |अक्सर कुछ लोग ऐसा महसूस करते है कि लोग उनकी उपेक्षा कर है और उन्हें जिन्दगी के कुछ बुरे अनुभव होते है जिनमे उनके अपने या दिल के करीब रहने वाले लोगो ने उनका भरोसा तोडा होता है जिसकी वजह से वो लोगो पर पुन: भरोसा कर पाने में उतना सहज महसूस नहीं करते है जिसकी वजह से उनमे इस तरह के लक्षण देखे जा सकते है | ऐसे में लोग असामाजिक हो जाते है | इसे psychological कारणों की श्रेणी में रखा जा सकता है |परिवारों में जिनमे जरुरत से अधिक दबाव बच्चो पर होता है या पेरेंट्स अगर helicopter parents टाइप के होते है तो ऐसे बच्चे खुद को बहुत बार अकेला महसूस करने लगते है उनमे लोगो से घुलने मिलने की काबिलियत का शौक या उत्साह खत्म हो जाता है इसे हम अपने माहौल के जरिये होने वाला कारण कह सकते है | social phobia के लक्षण एकदम सामान्य तरीके के होते है और इसलिए इन्हें थोडा पहचानना मुश्किल होता है लेकिन अगर आप थोड़े दिमाग के साथ लक्षणों को पहचानने पर काम करते है तो इन्हें पहचान सकते है कुछ ये तरह के लक्षण आपको देखने को मिलते है –
1. भय के कारण घबराहट होने लगती है |
2. दिल की धड़कन बढ़ जाती है |
3. पसीना अत्यधिक मात्रा में आने लगता है और पेट दर्द की शिकायत भी हो सकती है |
4. आदमी लोगो से बचने की कोशिश करने लगता है क्योंकि उसे सामाजिक होना असहज महसूस होता है |
5. ऐसे लोग दूसरों के सामने अपना कोई काम करने में भी सहज महसूस करते है उनके साथ खाना खाने में चीज़े शेयर करने में भी उन्हें असहज महसूस होता है |
बच्चो में भी इसके लक्षण होते है और जो बच्चे इसके शिकार होते है वो गुस्से में आकर सामान भी फेंकने लगते है |चूँकि इस रोग के कोई शारीरिक लक्षण नहीं होते जिसकी वजह से हम कोई टेस्ट करवा लें और रोगी को पता लग जाये कि उसे इस तरह की कोई बीमारी है ऐसे में physiologist या psychiatric  रोगी व्यक्ति से बातचीत के दौरान यह पता लगाने की कोशिश करते है कि चीजों के लिए उसका रिएक्शन कैसा है और उसके बाद वो किसी नतीजे पर पहुँचते है और इस रोग का कोई प्रभावी उपचार दवा के माध्यम से नहीं किया जा सकता इसके लिए बेविरिअल थरेपी की जरुरत होती है जिसमे रोगी के मन के डर जो उसकी खुद की कल्पना है उस से लड़ना उसमे विकसित किया जाता है और चीजों के प्रति पूर्वाग्रह रखने की उसकी आदत को दूर करने की कोशिश की जाती है |

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